हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण साहिब की अदभुत और आशचर्यजनक यात्रा जिसने हम सब का मन मोह लिया
कैसा लगेगा अगर आपको पता चले कि हिमालय में भारी बर्फ और ठंड के होते हुए भी आप प्रकति की गोद मे नहाने का लुप्त उठा सके, प्रकृति की गोद मे गर्म पानी मे स्नान का आनंदमयी संयोग बना सके, जी हाँ यह सच है क्यों कि आज जहाँ का ब्लॉग में लिखने जा रही हु, वो स्थान ऐसा ही कुछ है, इस लेख को जरा भी स्किप मत कीजियेगा अन्यथा आप बहुत कुछ जानने से अनजान रह जाएंगे। आपको पता है ही अब गर्मी का मौसम आने वाला है और गर्मी की छुटि्टयों में हील स्टेशन में घूमना किसी स्वर्गीय अनुभूति से कम नहीं है। हमारे देश में कई सारे हील स्टेशन हैं इनमें हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का मनाली हिल स्टेशन विश्व प्रसिद्ध है। कुल्लू जिले में घूमने-फिरने के कई सारे स्थान हैं। इसके साथ ही यहां एक धार्मिक स्थल भी है जहां का पानी इस बर्फीले ठंड में भी उबलता रहता है।
बात अप्रैल 2021 की है, में और मेरी पूरी टीम एक गाने की शूटिंग के लिए हिमाचल गए हुए थे, हम पार्वती वैली के सफर (Parvati Valley Tour) पर थे. इस सफर में हमने कसौल (Kasol Village),मनाली ,बिजली महादेव कुल्लू , मणिकर्ण (Manikaran Sahib) का टूर किया था, वही से मुझे प्रेरणा मिली और आज के ब्लॉग में हम बात करने वाले है उसी टूर के दौरान हिमाचल में स्थित मनिकरण साहेब की, हिमाचल में ये गुरूद्वारा काफी प्रसिद्ध है।
क्योकि बात केवल मणिकर्ण की कर रही हु तो में पूरी यात्रा का वृतांत आपके सामने नही रखूंगी!
हम कसोल में कैम्पिंग करने गए थे, जो कि पार्वती नदी कि बिल्कुल किनारे पर स्थित था, वहा रात्रि विश्राम कर के दूसरे दिन मणिकर्ण की यात्रा का प्लान था, जैसे ही सुबह हुई हम निकल पड़े यात्रा पर, मनमोहक दृश्य जैसे आंखों को बस यही देखना था, एक तरफ हिमालय एक ओर पार्वती नदी, अद्भुत सौंदर्य।
कसोल से 30 मिनेट में हम मणिकर्ण पहुचे, मणिकरण साहिब तक पहुँचने के लिए हमे पार्वती नदी पर बने पैदल पुल को पार करते हुए आगे बढ़ना था। नदी के पुल के ऊपर खड़े होकर मुझे उसके जल प्रवाह की शक्ति की प्रचुरता का आभास हुआ। उस बहते हुए पानी में इतना बल था कि, कोई भी उसके रास्ते में खड़ा नहीं हो सकता था। उसके सामने मेरे विचार भी जैसे स्तब्ध हो गए थे। उस पुल के नीचे बहती इस नदी की गर्जना के सिवाय मुझे और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।गुरुद्वारा मणिकरण साहिब 16वी शताब्दी के उत्तर काल के दौरान मणिकरण में गुरु नानक देव की यात्रा का स्मारक चिह्न है।
उपाख्यान के अनुसार जब गुरु नानक देव जी मणिकरण आए थे और उन्होंने गाँव से लंगर मांगा था। यहाँ के लोगों से उन्हें बस कच्ची सामग्री ही प्राप्त हुई थी लेकिन उसे पकाने के लिए कोई चूल्हा नहीं था। तब गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों से एक पत्थर उठाने के लिए कहा। पत्थर उठाते ही उसके नीचे उबलता हुआ पानी देखकर सभी हैरान रह गए। यह पानी खाना पकाने के लिए एकदम योग्य था परन्तु, खाना उस गरम पानी के तालाब में डूबता गया और सभी अनुयायि गुरु को देखने लगे। तब गुरु ने कृतज्ञता से उन्हें एक सीख दी। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि, अगर उन्हें खाना खाना है तो उन्हें वह खाना भगवान को अर्पित करना होगा। और जैसे ही यह शपथ ली गयी कि, यह खाना भगवान को चढ़ाया जाएगा, तो सारा खाना अपने-आप तैरने लगा। तभी से यहाँ पर 365 दिन लंगर बनया जाता है , जाहिर सी बात है यहाँ का लंगर बहोत ही स्वादिष्ट था ,लंगर के बाद यहां आपको अपने बर्तन खुद धोने होते हैं।
गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब के बाहर, हम एक लंबे से सुरंग-जैसे गलियारे से गुजरते हुए ‘गरम कोठी’ नाम के एक कक्ष तक पहुंचे। हमारे पाँव के नीचे के पत्थर बहुत गरम थे। हमने वहाँ पर बहुत से लोगों को पत्थरों पर बैठे हुए देखा और जब हमने उनसे पूछा कि वे वहाँ पर क्यों बैठे हैं। उनका जवाब सुनकर हम हैरान रह गए।
उन्होंने बताया कि यहाँ की गर्मी व गर्म पानी आपकी अनेक बीमारियों को ठीक कर सकती है, खास कर जोड़ों के दर्द से संबंधित परेशानियाँ को। ये जानकर मेने भी सोच क्यों न इससे चीज का लाभ लिया जाए और उतर गए गर्म पानी के कुंड में ,वास्तव में इस पर विश्वास करना असंभव था कि, एक दूसरे के इतने पास स्थित दो जलस्रोतों के तापमान में लगभग 100 डिग्री सेंटीग्रेड का फर्क हो सकता है। एक तरफ जहां पार्वती नदी का पानी बर्फ जैसा ठंडा था तो दूसरी तरफ उसके ठीक पास में स्थित गर्म जलस्रोतों में उबलता हुआ पानी था।
इन गर्म जलस्रोतों में आप लगभग आधे घंटे में सूती की थैली में डालकर अपने अनाज खुद उबाल सकते हैं। यहाँ पर आस-पास हमे ऐसे अनेक थैले देखने को मिले। एक बड़े बर्तन में मणिकर्ण साहिब का लंगर पकाया जा रहा था। गर्म जलस्रोतों से निकलती हुई भाप के बीच से जब आप मंदिर को देखते हैं, तो आप इसी सोच में पड़ जाते हैं कि, क्या हम कभी भी इस दुनिया के रहस्यों को समझ पाएंगे? क्या ये रहस्य इसीलिए बिखेरे गए हैं कि हमे याद दिला सके कि, हम प्रकृति के बारे में कितना जानते हैं और हमे कितना कुछ जानना-समझना बाकी है?
इस जगह से जुड़ी एक और भी पौराणिक मान्यता है ,कहते हैं की उन दिनों की बात है जब भगवान शिव अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ यहाँ पर 1100 वर्षों तक रहे थे। एक बार तालाब में कुछ चंचल से पल बिताते समय देवी पार्वती के कान की बलियों से एक मणि टूटकर सीधा शेषनाग के पास जा गिरी पार्वती ने शिव से अपना मणि खोज कर लाने की जिद की और जब शिव जी वह मणि नहीं खोज पाये तो उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोली और नैना देवी का जन्म हुआ
नैना देवी शिव की आँखें बनकर वह मणि खोजने के लिए निकल पड़ी। तब शेषनाग ने बहुत सारे मणि बाहर थूके और पार्वती से उनकी मणि चुनने के लिए कहा। तब देवी पार्वती ने अपना मणि निकालकर बाकी सारे मणियों को पत्थर बनने का श्राप दिया। यह कहा जाता है कि, शेषनाग के थूकने के साथ ही इन उष्ण जलस्रोतों का निर्माण हुआ था। लोगों का यह भी कहना है कि पहले इन जलस्रोतों से मणियाँ निकला करती थी लेकिन 1905 में यहाँ पर हुए भूकंप के बाद यह सब बंद हो गया।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यहाँ के पानी में सल्फर की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण पानी गर्म रहता है
कैसे पहुँचे
मणिकरण का प्रमुख रेलवे स्टेशन पठानकोट में है जो 300 किमी दूर है और कालका जो 293 किमी . है, कोई भी इस पर्यटक कुल्लू या मनाली दोनों से मणिकरण की यात्रा कर सकता है, क्योंकि दोनों एक दूसरे के बेहद करीब है। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए पर्यटक टैक्सी का इस्तेमाल कर सकते हैं। कसोल घूमने वाले बहुत से पर्यटक मणिकरण जाना भी पसंद करते हैं।
मणिकरण जाने के लिए पर्यटक भुंतर हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर सकते हैं। इस हवाई अड्डे से मणिकरण, हिमाचल प्रदेश के बीच की दूरी 34।8 किमी है।
भुंतर के मणिकरण बस की मदद से पहुंचा जा सकता है। भुंतर से मणिकरण के लिए कई स्थानीय बसें उपलब्ध हैं। निकटतम प्रमुख हवाई अड्डा चंडीगढ़ में है जो भुंतर से 8 घंटे की दूरी पर है।
बस से पहुने के लिए चंडीगढ़, कालका या पठानकोट से सीधे बस सुविधा का लाभ भी आप उठा सकते हैं
आशा करती हु मेरा या लेख आपको पसंद आया होगा, यह मेरा पहला अनुभव था लेकिन टिप्पणी के मध्यम से आप मुझे सहयोग करेंगे एसा विश्वास हैं|
रूपाली गुप्ता, मध्य प्रदेश
12 Comments. Leave new
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